भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जो बीता वह कल मत माँगो / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
जो बीता वह कल मत माँगो।
जीने का सम्बल मत माँगो॥
जिनमें सपने तैर रहे उन
आँखों का काजल मत माँगो॥
हम बंजारे हैं सपनों का
प्यारा ताजमहल मत माँगो॥
पग-पग कठिन समस्याएँ हैं
हर उलझन का हल मत माँगो॥
सुधा और मदिरा सब दे दी
यह जो बचा गरल मत माँगो॥