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जो ब-वक़्ते-मर्ग तेरी आरज़ू रहे/ विनय प्रजापति 'नज़र'

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लेखन वर्ष: २००५/२०११

जो ब-वक़्ते-मर्ग<ref>मृत्यु के समय भी</ref> तेरी आरज़ू रहे
इससे क्या कि उम्रभर रू-ब-रू<ref>आमने-सामने</ref> रहे

गर न कह सके उम्रभर दिल की बात
ये क्या कि आते-जाते गुफ़्तगू रहे

मैं तुम्हें देखूँ तुम मुझे, मुड़-मुड़के
न मुझे सुकूँ रहे, न तुझे सुकूँ रहे

तुम इशारों में कहो मैं जिन्हें पढूँ
दो दिलों को इश्क़ की जुस्तजू रहे

तुमने दिल मेरा आख़िरश<ref>अंतत:</ref> जीत लिया
अब दिल में तेरे लिए नया जुनूँ रहे

इस हालात का बाइस<ref>कारण</ref> महज़ तुम हो
इससे क्या कि निगाह में खू़ब-रू<ref>ख़ूबसूरत चेहरे</ref> रहे

शब्दार्थ
<references/>