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जो भरा मन में वो बाहर है कहाँ / रंजना वर्मा

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जो भरा मन मे वो बाहर है कहाँ
हट न पाये ऐसा पत्थर है कहाँ
 
जिस की ख़ातिर जान भी दे दे कोई
अब कहीं ऐसी धरोहर है कहाँ
  
जिंदगी की राह सूनी ही रही
साथ दे जो ऐसा दिलवर है कहाँ
 
साँवरे को देख कर दिल ने कहा
ऐसा कोई और मंजर है कहाँ

छोड़ कर तुझको निहारूँ मैं किसे
इस जहां में तुझसे बेहतर है कहाँ
 
जो मिटा डाले बहारों का निशां
मौसमों में ऐसा पतझर है कहाँ

दूसरों पर कर निछावर जिंदगी
सूख जाये वो समन्दर है कहाँ