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जो भी कहना था वो अनकहा रह गया / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
जो भी कहना था वो अनकहा रह गया
कुछ पुराना रहा, कुछ नया रह गया
उसने होंठों पे चुप्पी के ताले जड़े
सत्य को बोलता-बोलता रह गया
आग में जल गया रस्सियों का बदन
फिर भी `बल' रस्सियों में बचा रह गया
घाव ऊपर से लगने लगा था भरा
घाव अंदर ही अंदर हरा रह गया
वो जो पूरी तरह पारदर्शी लगा
कुछ तो उसके भी मन में छिपा रह गया
पंख मिलते ही पंछी उड़े पेड़ से
पेड़ अपनी जगह पर खड़ा रह गया
दोनों छोरों के अतिवादियों के लिए
शेष बस बीच का रास्ता रह गया