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जो भी चीज़ यहाँ है आनी जानी है / कृश्न कुमार 'तूर'

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जो भी चीज़ यहाँ है आनी जानी है
दुनिया का क्या है दुनिया तो फ़ानी है

दिल तो नहीं करता फिर भी हम ज़िन्दा हैं
और यही बस इक कारे-लासानी है

जैसे लौट के आए इक गुंबद की सदा
आईना देख के मुझको ख़ुद हैरानी है

एक हुबाब की आख़िर है औक़ात ही क्या
दीवानी है ये दुनिया दीवानी है

इक मिट्टी के खिलौने से क्या उम्मीद नमू
दिल के अन्दर बाहर तो वीरानी है

जी ख़ुश हो तो लगता है आबाद जहाँ
है सर-सब्ज़ आँख तो हर मौसम धानी है

दोनों तरह से ज़ियाँ है अब इस दिल का ‘तूर’
रुके तो मिट्टी और चले तो पानी है