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जो भी बात न पूरी समझा / राकेश जोशी

जो भी बात न पूरी समझा
आधी और अधूरी समझा

उतना ही भूला हूँ तुमको
जितना बहुत ज़रूरी समझा

खूब अँधेरे में बैठा तो
ख़्वाबों की बे-नूरी समझा

पुल टूटा तो किसने इसको
कैसे दी मंज़ूरी समझा

बोल न कुछ तू आसमान को
दिल से दिल की दूरी समझा

मज़दूरों से मिला तो उनको
मिली नहीं मज़दूरी समझा

रोटी से मिलकर तू उसको
भूखों की मजबूरी समझा