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जो भी है गिला उसको भुला क्यों नहीं देते / अजय अज्ञात

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जो भी है गिला उसको भुला क्यों नहीं देते
नफ़रत की ये दीवार गिरा क्यों नहीं देते

पत्थर ये, सबब ठोकरों का बन रहा कब से
मिल कर इसे रस्ते से हटा क्यों नहीं देते

हो जाये कोई शे‘र तो मुझ से भी मुकम्मल
हो जाये मुझे इश्क़ दुआ क्यों नहीं देते

कानून शरीफ़ों के लिये ही बना है क्या
जिनकी है ख़ता उनको सज़ा क्यों नहीं देते

‘अज्ञात’ छिपे ऐब जो सब के है दिखाता
वो आईना मुझ को भी दिखा क्यों नहीं देते