भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो मंसबो के पुजारी पहन के आते हैं / राहत इन्दौरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो मंसबो के पुजारी पहन के आते हैं।
कुलाह तौक से भारी पहन के आते है।

अमीर शहर तेरे जैसी क़ीमती पोशाक
मेरी गली में भिखारी पहन के आते हैं।

यही अकीक़ थे शाहों के ताज की जीनत
जो उँगलियों में मदारी पहन के आते हैं।

इबादतों की हिफाज़त भी उनके जिम्मे हैं।
जो मस्जिदों में सफारी पहन के आते हैं।