भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जो मर गए पिछली सर्दियों में / संजय चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
लोग भूल जाते हैं
कौन लोग थे
जो उम्हें इतिहास निकाल कर लाए
उन्हें खींचते रहे
उनकी गर्म रजाइयों से बाहर
लकड़ियाँ इकट्ठी करते रहे
कहीं मौसम ज़्यादा ख़राब न हो जाए
उनके सहमे हुए घरों में आवाज़ बनकर रहे
लोग भूल जाते हैं वसन्त आते ही
कौन थे जो मर गए पिछली सर्दियों में।