भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो मिला उसको तअल्लुक़ का गुमां रहने दिया / वसीम बरेलवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो मिला उसको तअलक़ क गुमां रहने दिया
उसने मेरा ख़्वाब मेरा ही कहां रहने दिया

दुश्मन -ए-तहज़ीब-ए-मशिरक़ और क्या चाहेगा तू
हमने टी.वी. को खुलाला वक़्त -ए-अज़ां रहने दिया

काहे की बहसे मियां , वो हम हुए या तुम हुए
किसने ये िहंदोस्तां िहंदोस्तां रहने दिया

इक दिए का चेहरा कोई दूसरा पढने न पाये
घर के आंगन मे किसी ने वो धुआं रहने दिया
 
मैं बनाना चाहता था जिसको ग़ािलब की ग़ज़ल
तुमने उस बस्ती मे मेरा घर कहां रहने दिया