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जो मुकर्रर पासबाँ थे उस हसीं के वास्ते / प्रेम भारद्वाज
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					जो मुकर्रर पासवां थे उस हसीं के वास्ते 
यूं ह्ये मुखबिर नहीं रक्खा किसी के वास्ते
सिर हथेली पर लिये हैं जो हसीं के वास्ते 
बात बिग़ड़ी तो न छोड़ेंगे कहीं के वास्ते
छोड़ ये सारी अदाएं सादगी से दे पिला 
हम नहीं आते यहाँ साकी हसीं के वास्ते 
बुझ गए पर्वत यहाँ जब गर्मियों की वो घुटन
घूमने निकली हवा ताज़ातरीं के वास्ते
क्या है बीहड़ के सफ़र का पास तेरे एंतज़ाम
गर बटोरा माल गठड़ी  में यहीं के वास्ते
इस वतन की शाम मिट्टी में मिली होगी तभी 
जब ज़फर तड़पा किए तो गज़ ज़मी6 के वास्ते
है कहीं गहरे में दुबका प्रेम उसके ज़हन में
देर जो इतनी लगाई इक नहीं के वास्ते
	
	