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जो ये चाँद-तारों को नींद आ रहीहै / बलबीर सिंह 'रंग'

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जो ये चाँदतारों को नींद आ रहीहै,
कहीं ग़म के मारों को नींद आ रही है।

बयाँवा में खुलकर खिजाँ खेलती है,
चमन में बहारों को नींद आ रही है।

न वादा किया आज तक कोई पूरा,
यहाँ इन्तज़ारों को नींद आ रही है।

परेशान क्यों हो रहे ‘रंग’ नाहक,
तुम्हीं क्या हज़ारों को नींद आ रही है।