जो रत्नमालिका से निबद्ध थी बीच-बीच में कुसुम-खचित।
धन परिमल-गुम्फित लम्बमान मालती-माल से सुभग रचित।
पश्चात् भाग में रचित महामणि वर माणिक्य-गुच्छ-गुम्फित।
वेणी मेरी क्या अब न गूँथ जाओगे जीवन-सहचर! नित।
प्रियतम, तुम “प्रेम-विलास-विभव-निधि शोभा-निधि, राधे जय-जय”।
कह-कह, उठते थे नाच, महारस, महाभाव का दिव्य उदय।
कन्दर्प-कलानिधि! आ विकला बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥129॥