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जो लिख चुका / भारत भूषण अग्रवाल
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जो लिख चुका
वह सब मिथ्या है
उसे मत गहो!
जो लिखा नहीं गया
घुमड़कर भीतर ही रहा
वही सच है
जो मैं देना चाहता हूँ!
लो, यह दे दिया
सूनी हवा की लहरों पर
दिये-सा सिराकर
तुम्हारा नाम!
रचनाकाल : 17 मार्च 1966