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जो वक्त के हिसाब से ढलता चला गया / भावना

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जो वक्त के हिसाब से ढलता चला गया
हर मोड़ पर वो आगे निकलता चला गया

जैसे कि मोम हूं मैं, वो जलता हुआ दिया
वैसे मेरा वजूद पिघलता चला गया

यूं ख़ुशबू उसकी आन बसी रूह में मेरी
मेरा ही अक्स उसमें बदलता चला गया

जैसे कि मुंह में बच्चा कोई मिट्टी डाल ले
ऐसे वो मुश्किलों को निगलता चला गया

दिल में हजार जज़्बों की गठरी लिए हुए
मैं लड़खड़ा पड़ी, वो संभलता चला गया

उसके क़रीब जाके भी मैं छू नहीं सकूं
वह दूर मुझसे इतना निकलता चला गया