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जो शख़्स मुद्दतों मिरे शैदाइयों में था / शकीला बानो
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जो शख़्स मुद्दतों मिरे शैदाइयों में था
आफ़त के वक़्त वो भी तमाशाइयों में था
उस का इलाज कोई मसीहा न कर सका
जो ज़ख़्म मेरी रूह की गहराइयों में था
वो थे बहुत क़रीब तो थी गर्मी-ए-हयात
शोला हुजूम-ए-शौक़ का पुरवाइयों में था
कोई भी साज़ उन की तड़प को न पा सका
वो सोज़ वो गुदाज़ जो शहनाइयों में था
बज़्म-ए-तसव्वुरात में यादों की रौशनी
आलम अजीब रात की तन्हाइयों में था
उस बज़्मा में छिड़ी जो कभी जाँ-दही की बात
उस दम हमारा ज़िक्र भी सौदाइयों में था
कुछ वज़-ए-एहतियात से ‘बानो’ थे हम भी दूर
कुछ दोस्तों का हाथ भी रूस्वाइयों में था