जो शज़र सूख गया है वो हरा कैसे हो
मैं पयम्बर तो नहीं मेरा कहा कैसे हो
जिसको जाना ही नहीं उसको खुदा क्यूँ मानें
और जिसे जान चुके हैं वो खुदा कैसे हो
दूर से देख के मैंने उसे पहचान लिया
उसने इतना भी नहीं मुझसे कहा कैसे हो
वो भी एक दौर जब मैंने उसे चाहा था
दिल का दरवाज़ा है हर वक़्त खुला कैसे हो
उम्र सारी तो अँधेरे में नहीं कट सकती
हम अगर दिल न जलाएं तो ज़िया कैसे हो
जिससे दो रोज भी खुलकर न मुलाकात हुई
मुद्दतों बाद मिले भी तो गिला कैसे हो