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जो हसीं जी़स्त की तस्वीर दिखाई सब ने / अमीता परसुराम मीता
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जो हसीं जी़स्त1 की तस्वीर दिखाई सब ने
इक कहानी थी, सुनी, और सुनाई सब ने
सिर्फ़ ख़्वाबों का सराबों2 का सफ़र जीते हैं
ज़िन्दगी की जो हक़ीक़त है भुलाई सब ने
ख़ुद बना कर वो नई रस्म कहा करते हैं
‘रस्म तो रस्म है’, फिर रस्म निभाई सब ने
ख़ून दे दे के जिसे सब ने बुझाया था कभी
जाने क्यों फिर से वही आग लगाई सब ने
अहल-ए-दिल3 के लिये क्या जान की बाज़ी मीता
जान देनी थी, तो फिर जान गँवाई सब ने
1. ज़िंदगी 2. भ्रम 3. प्यार करने वाले