Last modified on 7 सितम्बर 2020, at 11:30

जो हाथ बढ़ा कहां रिफाक़त का है / रमेश तन्हा

 
जो हाथ बढ़ा कहां रिफाक़त का है
दुश्मन का इरादा तो शरारत का है
तहज़ीब इंसानियत का मुंह तकती है
इंसां पे अभी दौर ज़हालत का है।