भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो है मन में उनसे अब कविताएँ नहीं बनती / जया झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो है मन में उनसे अब कविताएँ नहीं बनती।

डुबाए बिना जो भिगो जाएँ, धाराएँ नहीं बहती।


खुशियाँ बेरुखी सही, पर दर्द भी रसहीन है।

बंजर मिट्टी पर कभी लताएँ नहीं सजती।


हुनर नहीं कि बोल कर भी बात छिपा जाएँ

बेबाक नहीं हो सकते उससे बात नहीं बनती।


बनाते हैं वे ख़ुदा तुम्हें, अहसान नहीं करते

ख़ुदाओं से दुनिया कभी ख़ताएँ नहीं सहती।