भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो है सो है / आनंद कुमार द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुमने भी
कुछ तो खोया है
और उसका अहसास तक नहीं,
तुम शुरू से
एक नंबर की लापरवाह हो,

परेशान मत होना
मैंने सहेज लिया है
वो सब
जो बेकार है तुम्हारे लिये
किसी के लिये भी

मेरा क्या
उदास दिन, उदास रातें
उदास मौसम
उदास हवा, पानी, पेड़-पौधे
किसी पर भी इल्ज़ाम लगा दूँगा
कुछ भी

पर नहीं कहूँगा
कि तुम हो कहीं
मेरे अंदर अब भी
तुम्हारे लाख न चाहने के बावजूद

देखो खीझो मत !
अब
जो है सो है |