हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
जौ गीवहां को उबटणों राय चमेली का तेल
अत लाडो बैठ्यो उबटणै
मैल झड़े झड़ मैं पड़े नूर चढै गोरे अंग
अत लाडो बैठ्यो उबटणै
आ मेरी मायड़ देख ले तम देख्या सुख होय
अत लाडो बैठ्यो उबटणै
आ मेरी भुआ देखल्यो तमने आरतड़ा रो चाव
अत लाडो बैठ्यो उबटणै