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ज्ञान कोई औजार नहीं है / संजय तिवारी

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सात वर्षो में पाया
तुमने अपना ज्ञान
पर सात जन्मों का भी
तो रखते कुछ मान
सात फेरों में तुमने
किये थे सात संकल्प
मुझे छोड़ नहीं चुनोगे
कोई और विकल्प
अपने ही संकल्प भुला दिया
केवल मझे रुला दिया
सात बरस बाद
जब ग्यानी बन कर
कपिलवस्तु में आये थे
तुमने बहुत खोजा
पर मुझे कही नहीं पाए थे
याद करो
याद करो बुद्ध
मैं नहीं थी तेरे विरुद्ध
तुमने सभी रिश्तों को
पहचाना भी था
जिसने जो कहाँ
सबकी माना भी था
माता? पिता? भ्राता
गांव घर का एक एक नाता
सभी कुछ अर्पित था
जो भी तुम्हें भाता
तुमने मुझे त्याग कर
पाया था ज्ञान
मैंने खुद को खो कर
रखा था तुम्हारा मान
राहुल को भी भेजा था
तुम्हारे पुत्र को
तुम्हारे लिए ही सहेजा था
तुम जानते थे
पहचानते थे
मानते थे
कपिलवस्तु में उसी क्षण
दिखी थी तुम्हारी त्वरा
शुरु हो गयी एक नयी परंपरा
याद करो
मैं जानती थी
तुम फिर कभी आ न सकोगे
मुझे भी पा न सकोगे
मैं चाहती थी कि तुम
अपना ज्ञान गा सको
जो चाहते थे
वह सब पा सको
लेकिन अब बताना
तुमने क्या गाया
क्या पाया
मुझे खो कर
भीतर ही रो कर
तुम्हारे स्वागत में उमड़ने वाली
वह भीड़ कहाँ है?
ज्ञानालोकित नीड कहाँ है?
कहाँ हैं तुम्हारे विहार
थक चुकी निहार निहार
कहीं कुछ भी दिखता नहीं है
गौतम
यकीन करो
सबकुछ बिकता नहीं है
ज्ञान कोई औजार नहीं है
जीवन कोई बाज़ार नहीं है