भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज्ञान / शशि सहगल
Kavita Kosh से
पता चल चुका है हमें
चाँद पर हैं पत्थर, गड्ढे और चट्टानें
लेकिन मासूम दरख़्त
झूमता है
पूरे चाँद की रोशनी में नहाकर।
भूलकर भी मत बतलाना उसे
चाँद की असलियत
मत छीनना उससे
भ्रम का स्वर्ग