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ज्योतिषी से / अज्ञेय
Kavita Kosh से
उस के दो लघु नयन-तारकों की झपकी ने
मुझ को-अच्छे-भले सयाने को!-पल भर में
कर दिया अन्धा
मेरा सीधा, सरल, रसभरा जीवन
एकाएक उलझ कर
बन गया गोरख-धन्धा
और ज्योतिषी! तुम अपने मैले-चीकट
पोथी-पत्रे फैला कर,
पोंगा पंडित! मुझे पढ़ाते हो पट्टी, रख दोगे
इतने बड़े गगन के सारे तारों के
रहस्य समझा कर?
स्लोवीनी कवि प्रेशेरन् (1800-1949) की एक कविता पर आधारित।