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झंडे / तुलसी रमण
Kavita Kosh से
झंडे
फलों के पकने का
मौसम आ रहा है
उठ रहे
बागीचों में
जादुई झंडे
मौसम से ठीक पहले
रूई से काते गये
धागों से बुने कपड़े के
मिले-जुले रंगों में
तानकर मायाजाल विनम्र
रात रात भर
नींद हराम करेंगे झंडे
बटोर लेंगे
कच्चे-पक्के
दुबले और बीमार फलों को
चतुरों की तरह बितयाएंगे
पागलों की तरह हंसेंगे
हाथ जोड़कर
संजो लेंगे
पेड़ों और फलों की आत्माओं का अर्क
और बागीचों में
बरछों की तरह
सालों.... फहराते रहेंगे
झंडे