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झण्डा ऊंचा रहे हमारा / निशांत
Kavita Kosh से
देश का सबसे बड़ा हत्यारा
राजधानी में झण्डा फहरा रहा है।
गली का सबसे बड़ा गुंडा
गली में झण्डा फहरा रहा है।
लोग ताली बजा रहे हैं
लड्डू खा रहे हैं।
राजधानी में बैठा एक बूड्ढा कवि
गली का युवा कवि और
झंडे के पीछे छिपा पुरस्कृत कवि
कुछ शब्द उच्चारते हैं
कोई धमाका नहीं होता
आजादी के इतने सालों में
शब्दों से निकल गया है उनका रसायन
सिर्फ जबानी प्रतिकृया होती है
कोई धमाका नहीं होता
हत्यारे झण्डा फहरा रहे हैं
गीत ग रहें हैं
-झण्डा ऊंचा रहे हमारा...