झन पीबे गांजा दारू / ज्ञानू राम भारद्वाज
मोर माटी के मयारू
झन पीबे गांजा दारू
दू पइसा ज़ोर के रखवे,
आही तोर काम गा।
लग जाथे थोरको चुलूक,
मन नइ माढ़े गा।
घर म नइये पइसा तब,
दूसर करा काढ़े ग।
देहे नइ सकवे तब,
होवे तय बदनाम गा।
भट्ठी म जाके पइसा ल,
पानी असन वहाथे गा।
लोग-लइका, दाई ददा,
सबों ल भूल जाथे गा।
पी पारथे तहां ले,
नइ करम काम धाम गा।
खुद तो पीथे दूसर,
घालो ल पियाथे गा।
गली घोर म आके,
गारी मार घलो खाथे गा।
तंय हर कभू झन पीबे,
बिस्की जाम गा।
गांजा दारू बीये म,
तन-मन के हानि होथे गा।
इही भर नहीं भइया,
जन-धन के हानि होथे गा।
पछीना तंय हर वहावे,
सुबे अउ शाम गा।
मेहनत के पइसा म,
अबड़ हावय ताकत गा।
बइमानी के रद्दा म,
लगे हावय फाट क गा।
मेहनत तंय हर करवे,
कटको करय सरदी घाम गा।
दू पइसा ज़ोर के रखवे,
आही तोर काम गा॥