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झरते हैं फूल-पात / तारादत्त निर्विरोध
Kavita Kosh से
झरते हैं फूल-पात
डाली से,
गंधाते शूल हैं
मौसम की गाली से
एक नहीं गंध
एक नहीं राग-रंग,
सबके हैं
खिलने के
अलग-अलग ढंग
वृक्षों के
हालचाल
पूछें क्यों माली से
सूखे से कानन में
मलयज के गीत,
लगते बेमानी-से
अर्थहीन
लय के
शब्दहीन-संगीत
चलता है कामकाज
अक्षरों के राज में
शब्दों के हल्लो से,
अर्थों की ताली से