भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

झरना बने हुए हो कोई तुम से क्या मिले / मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झरना बने हुए हो कोई तुम से क्या मिले
उतरे पहाड़ से तो समन्दर से जा मिले

किरदार की ख़ला में मुअल्लक़ नहीं हूँ मैं
लेकिन कोई सिला तो मिरी ज़ात का मिले

पहचान ले जो मद्दे-मुक़ाबिल <ref> प्रतिद्वन्द्वी </ref> को वाकई
हर आइने से खून उबलता हुआ मिले

छोटा-सा एक नीम का पौधा करे भी क्या
हर बेल चहती है उसे आसरा मिले

पेशानियाँ टटोल फ़रिश्ते मिलें अगर
मिट्ती का पाँव देख अगर देवता मिले

शब्दार्थ
<references/>