भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झरना / श्रीप्रसाद
Kavita Kosh से
बड़े वेग से झरना उतरा
पर्वत पर से
दुनिया में कुछ करने को
निकला है घर से
दृढ़ संकल्प, कठोर लक्ष्य
बस एक बनाए
चाहे कुछ भी करे
काम औरों के आए
कितना बल है, कहीं ठहरना
नहीं जानता
आगे बढ़ना, एक ध्येय
बस यही मानता
प्यास बुझाता पेड़ों की
चिड़ियों की, सबकी
हर मनुष्य की, हर पशु की
हर नन्हे कण की
निर्मल, उज्ज्वल, वेगभरा
बस बढ़ता जाता
लहर उठाता, चंचल, कलकल
छलछल गाता
ऊँचे पर से गिरता झरना
बड़ा निडर है
आता पर्वत पर से
मगर कहाँ पर घर है
झरना है मस्ती का
खुशियों का झरना है
इसको सूखेपन में
हरियाली भरना है।