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झलकता रूप / महेन्द्र भटनागर
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शशि पर घूँघट बादल का है !
घूँघट इतना झीना जिसमें
है शरमाया मुख प्रतिबिम्बित,
दो पागल कजरारी अँखियाँ
संधान किये नभ पर अंकित,
- सीमित रह न सका किंचित भी
- उभर-उभर मधु-घट छलका है !
- सीमित रह न सका किंचित भी
इतना छलका कि सितारों-से
छींटे उड़-उड़ कर फैल गये,
मानों उर से बाहर होकर
बिखरे हों अगणित भाव नये,
- या स्वर्ण-अलंकृत छोर गगन
- में फहराते आँचल का है !
- या स्वर्ण-अलंकृत छोर गगन