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झलके किरिनियां के कोर / विनय राय ‘बबुरंग’
Kavita Kosh से
बड़-बड़ महलियन में, भइल अंजोर में अंजोर।
टुटही मड़इयन में, नाहीं कबो होखेला भोर।
बड़-बड़ होटलवन में, चनवा के ताकेला चकोर
टुटही मड़इयन में, रोटी बिन टपकेला लोर।
बड़-बड़ बंगलवन में, नाचेला तनक-धीन मोर
टुटही मड़इयन में, दुखवा से टूटे पोरे पोर।
बड़-बड़ अफिसवन में, कगज़े पर होला घुड़ दौर
टुटही मड़इयन में, कफन बने अंचरा के छोर।
बड़-बड़ मठीयवन में, होखेला भजनवें में भोर
टुटही मड़इयन में, रोवला क ओर बा न छोर।
बड़-बड़ लहरियन में, लागेला बड़कने क जोर
टुटही मड़इयन में, के पूछे बाड़ऽ केवनी ओर।
बड़-बड़ महलियन में, नाहीं नाची मनवां क मोर
टुटही मड़इयन में, झलके किरिनियां क कोर।।