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झाँकी / अज्ञेय

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ओझल होती-सी मुड़-भर कर
सब कह गयी तुम्हारी छाया।
मुझ को ही सोच-भरे यों खड़े-खड़े
जो मुझ में उमड़ा वह
कहना नहीं आया।