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झाझरि बिरिछिया सीतल जूरी छहियाँ / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पिता अपनी बेटी को एक परदेशी के हाथ दान कर रहा है। बेटी माता-पिता के वियोग से दुःखी हो रही है। माता को भी इसका दुःख है कि जिस बेटी को बेटे की तरह पाला, वह आज दूसरे के साथ जा रही है। बेटी ने सांत्वना दी कि अभी तो मैं तुम्हारे ही घर में हूँ। तुमने ही मेरा विवाह परदेशी के साथ कर दिया है।

झाझरि<ref>छेदवाला; पुराना</ref> बिरिछिया सीतल जूरी<ref>ठंडा</ref> छहियाँ<ref>छाँह; छाया</ref>, बहि गेल सीतल बतास हे।
ओहि तर आहो बाबा पलँग ओछाओल<ref>बिछाया</ref>, बैठल बिदेसिया के साथ हे॥1॥
दहिनहिं जाँघ चढ़ि बैठल सीता बेटी, झरि झरि गिरे नैना लोर हे।
अपनी महलिया सेॅ बेटी माय बोलै, सुनु बेटी बचन हमार हे॥2॥
दूध भरि कटोरबा बेटी तोरो के देलिओ, बेटा नाहित<ref>बेटा जैसा</ref> कैलिऔ<ref>किया</ref> दुलार हे।
दूध के सरियत<ref>बदला देना; ऋण चुकाना</ref> गे बेटी तहुँ नहिं देलही<ref>दिया</ref>, चलि भेले बिदेसिया के साथ हे॥3॥
अखन<ref>अीाी; इस समय</ref> त छिओ<ref>हूँ</ref> हे अम्माँ तोरे नगरिया, बिआहि बिदेसिया के साथ हे॥4॥

शब्दार्थ
<references/>