भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

झाला / दिनेश कुमार शुक्ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बन रहे हैं, फूटते हैं, बुलबुले
झर रहा आषाढ़ का झाला
एक चिड़िया चुग रही है बुलबुले
बह गया है जाल ...

उत्ताल जल की ताल
झाला बज रहा है