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झिंगली केरऽ फूल / कुंदन अमिताभ

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गम-गम गमकी रहलऽ छै
झिंगली केरऽ फूल
गोधूलि बेला करीब छै
संकेत देॅ रहलऽ छै
धोरैय ऐतै
बैहारी दन्नेॅ सें
माल-जाल साथें
चराना बंद करी केॅ
बथानी के नादी में जोरी देतै
दोले-दोल भरी केॅ रखलऽ छै
जेकरा में पानी दिनै सें
नै तेॅ गोड़ी दन्नेॅ जे किल्ला
गाड़लऽ छै ओकरा में
फेरू दिन भर जे टिकोला
चुननेॅ छै जोगिया बगीच्चा में
अँगना धरी ऐतै
गुड़म्मा आरो चटनी बनै लेॅ
दोल लेॅ केॅ जैतै इनारा पर
नहैतै फेरू दूध दुहतै
छानी केॅ गाय केॅ
गर-गूँ गर-गूँ
तब तालुक खाना बनी चकलऽ रहतै
खैतै आरो दलानी पर आबी केॅ
खटिया पर पटाय जैतै
साझैं सें लेॅ केॅ नींद लानै ताँय
ओकरऽ थोथनऽ में
गुरमुरियाय केॅ
गम-गम गमकतेॅ रहतै
झिंगाली के फूल
जब तालुक वें ठर्रऽ
नै पारेॅ लागतै।
घुप्प अन्हारऽ में
आशा के जुगनू छेकै
झिंगाली के फूल।
रात केरऽ स्वागत लेली
प्रकृति केरऽ पसरलऽ
बाँह छेकै
झिंगली के फूल।