भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

झिलमिल करती मन में नन्हीं अनुराग कनी / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झिलमिल करती उर में नन्हीं अनुराग-कनी।
जीवन की अभिलाषा दुखियों का भाग बनी॥

क्रिसमस तरु सुमन शेष पंखुरियाँ मुरझाईं
उपवन में उग आये कितने ही नागफनी॥

प्राणों के अमृत से सींचे थे जो अंकुर
उनसे हैं आ लिपटीं हिंसाएँ आगजनी॥

करुण कन्त क्रोड पड़ी बन बैठी करुण कथा
जितनी थी रागनियाँ प्रीति-रीति-राग सनी॥

सुमन शीश दिए मिले नीरस फूलों के तन
फिर हैं सराहते अभावों के भाग धनी॥