भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

झींगुर / जोस इमिलिओ पाचेको / राजेश चन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(कविता का एक मोर्चा और दृष्टान्त)

मैं पुन: ग्रहण करता हूँ
अर्थसंकेत झींगुरों से :

उनका कोलाहल निराशाजनक है,
उनके डैनों की अकुलाहट
निष्प्रयोजन सर्वथा।

यदि अब भी नहीं है
उसमें कूट सन्देश
जिसे वे पहुंचाना चाहते हों
एक-दूसरे तक

तो (झींगुरों के लिए) रात
रात नहीं
हो सकती।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र