भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झीनी सी झँगूली बीच झीनो आँगु झलकतु / आलम
Kavita Kosh से
झीनी-सी झँगूली बीच झीनो आँगु झलकतु,
झुमरि-झुमरि झुकि ज्यों क्यों झूलै पलना ।
घुँघरू घुमत बनै घुँघुरा के छोर घने,
घुँघरारे बार मानों घन बारे चलना ।
आलम रसाल जुग लोचन बिसाल लोल,
ऐसे नन्दलाल अनदेखे कहूँ कल ना ।
बेर-बेर फेरि फेरि गोद लै-लै घेरि-घेरि,
टेरि-टेरि गावें गुन गोकुल की ललना ।