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झील की माटी अब ख़ुश है / प्रेमशंकर शुक्ल
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झील से काढ़ी जा रही माटी का मन
पहले भारी था
लेकिन ट्राली में लदी हुई
झील की माटी अब ख़ुश है
कि वह खेत में
हरियाली बन कर लहराएगी
सुनेगी अंकुरित होते बीजों का संगीत
और अपने सम्पूर्ण वात्सल्य से उन्हें वह दुलराएगी
फ़सलों के फूल से
महकेगा अब उसका हिया
हवा में जब बालियों के दाने बजेंगे
मारे ख़ुशी के वह झूम जाएगी
खेतों की तरफ़ ले जाई जा रही
ट्राली में मगन बैठी हुई मिट्टी
खेत के स्वप्न में है !