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झील / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर

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1
हज़ारों शीशे
रह–रहकर चमक उठते हैं
धूप इस तरह
झील के जालीदार दर्पण में
झाँकती है

2
मारवा का कोमल रिषभ है
ढलता सूरज
एक मुलायम आग
झील में जल उठी
सूरज पिघल रहा

3
झिलमिलाती रोशनियों के
पिलर गड़े हैं
पानी में
यह शहर
झील की बुनियाद पर
खड़ा है