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झुंड में निकलती हैं औरतें / मुक्ता

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आधी रात के बाद निकलती है औरतें
औरतों को सदियों से डराते आये थे लोग अँधेरे से
कूड़ा बीननेवाली औरतों नें चुना है अँधेरा अपने लिये
इन औरतों को अँधेरा डराता नहीं... आश्वस्त करता है
दर्प से दीप्त होते हैं इनके चेहरे
अँधेरे की शक्ति का आह्वान करती प्रतीत होती हैं औरतें
आँचल में लिपटे तने घनेरे ज्योति स्फुलिंग
बढ़े चले जाते हैं कदम... कदम... कदम
समूह की शक्ति को ये जानती हैं पहचानती हैं
अकेली नहीं झुंड में निकलती हैं औरतें

धूप में गहरे होते हैं नश्तर आँखों के... फब्तियों के
कूड़ा बीनती औरतों के लिये छाया है रात
सफ़ेद प्लास्टिक बोरों में वे समेटती हैं अपने श्रम को
ऊषा की लालिमा फूटने से पहले लौट आती हैं ठिकानों पर

कुछ औरतों नें बना ली है जगह अंतरिक्ष में
इनके पास नहीं है कोई सुरक्षित कोना पृथ्वी पर
ये औरतें ढूंढती रहतीं हैं समय को उलटने के औजार
सन्नाटे को चीरती रहती हैं इनकी तेज आवाज
धूप में भी बना रहता है इन औरतों के होने का अहसास।