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झुका- झुका सिर / प्रेमजी प्रेम
Kavita Kosh से
झंडा झुका
मेरा सिर झुक गया ।
“हरे राम
बेचारा अच्छा था।”
झंडा
तीन-सात-बारह दिन झुका रहा
फिर वापस
ऊंचा हो गया।
मेरा सिर फ़िर झुक गया
“घणी-खम्मा,
पधारो,
आपके आने से
बिगड़े
काम बनेंगे
अब तक
बेईमानी थी
भ्रष्टाचार था
चोरी थी
भाई-भतीजा था
अब सुधर जाएगी
देश की हालत
पधारो।”
मेरा मन
आज तक नहीं समझा
कि मेरा सिर
झंडे के उतरने
और
चढ़ने पर
झुकता क्यों है ?
अनुवाद : नीरज दइया