भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झुकी-झुकी खेतबा में गावऽ हे गीत सखि / सच्चिदानंद प्रेमी
Kavita Kosh से
झुकी-झुकी खेतबा में गावऽ हे गीत सखि,
जुड़ी-जुड़ी आवऽ हे सावन के मीत सखि
कैसन ओहार लगल फैल के डोली?
काउन रंग पंछी के भी लगे बोल?
बिसरल अँगनमा के-छछनल परनमा में
धोले को मिसरी-बढ़ावे लाप्रीत सरिव
मकई जुआन मेल-गाँव के छोरा-छोरी
मिले खिले नुके-छिपे खेले नुका चोरी
मन में उल्लास जगे-पल-पल विश्वास बढ़े
विहँसल नयनयमा में मान-हार जीत सखि-
देखऽ तनि बदरा के केतना धधयाल
मनहर रोपनी के गीत सुने आयल।
बूंद-बूंद पानी के-
थिरे-थिरे जवानी के
रिमझिम ई रहिया पर-
कीच करे धीत सखि-
सहकल जुआनी अँचरा उड़ाबे
पुरवैया टिटकारी सुनावे
बुतरूआ के
खखरइत पहरूआके
कउन बतलावे ई
नेहिया के रीत सखि
उ बुतरू बानर सन