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झुण्ड / नीलेश रघुवंशी
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पक्षियों को झुण्ड में जाते देखती हूँ जब भी
पहुँच जाती हूँ बचपन के दिनों में
देखती हूँ
जब भी मछलियों को जाल में फँसा
बेटियों को विदा करते
गीत गाती औरतों के झुण्ड में पहुँच जाती हूँ
देखती हूँ जब भी केलों के झुण्ड को
जीत का जश्न मनाते
खिलाड़ियों के झुण्ड में पहुँच जाती हूँ
पक्षी और केले
झुण्ड में किसी भी जगह को घेरते नहीं...
आकाश में उड़ते पक्षियों का झुण्ड
किसी की चोंच से गिरा कुछ धरती पर
काश...
ये वो पट्टी हो जो झुण्ड में रहने और
दूसरों को जगह देने का पाठ पढ़ाती हो
कितना अच्छा हो...
ये पट्टी
किसी भले मानुष के हाथ लग जाए...