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झुर्रियाँ / त्रिजुगी कौशिक
Kavita Kosh से
माथे पर
झुर्रियाँ झलकने लगी हैं
ये चिन्ता की हैं
या उम्र की... पर
चेहरे पर प्रौढ़ता का अहसास कराती हैं
ये
हर बुजुर्ग के चहरे पर
बल खाते हुए देखी जा सकती हैं
यह सुखों का कटाव है
या दुखों का हिसाब कहा नहीं जा सकता
किसी बूढ़ी माँ के ललाट पर
संवेदना का स्वर उचारती
काव्यपंक्तियाँ ज़रूर दिखती हैं
बूढ़े बाप के फ़लक पर
ज़िन्दगी का जोड़-घटाव
ऋअण-धन का हो या
दुख-दर्दों का पड़ाव
पढ़ा जा सकता हि
झुर्रियाँ
जीवन-इतिहास की लिपिबद्ध कहानी हैं
क्या आपने कभी पढ़ने की कोशिश की है?