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झूठा चांद, सितारे झूठे / विजय किशोर मानव

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झूठा चांद, सितारे झूठे
सच्चा तम, उजियारे झूठे

कहकर कहीं, कहीं लो आए,
सब के सब हरकारे झूठे

युग का सच, बारूदी गंधें,
ख़शबू के फव्वारे झूठे

मझधारों में भरी चुनौती
ढहते हुए किनारे झूठे

सबके मुंह पर पूंछ लगी है
इंक़लाब के नारे झूठे

घाटी में, पंजाब-असम में
उड़ता धुआं नज़ारे झूठे

अब सच्चे लगते बाज़ीगर
गांधी, गौतम सारे झूठे