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झूठी कथा ढाई आखर की / कुमार रवींद्र

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यहाँ हुआ जो
हम उसका क्या हाल कहें

पहले कुछ पगलाए
फिर पगलाए सारे लोग
बेबस बूढ़े-बच्चों की
हत्या के हुए प्रयोग

तुम भी, भाई, हो अज़ीब
हमसे कहते
तनी हुई तलवार - उसे हम ढाल कहें

मंदिर टूटे- गिरजा टूटे
टूटी मस्जिद भी
टूटी सबको अपना कहने की
अपनी ज़िद भी

हुई तरक्की
पर हम कैसे
टूटे गुंबद को इस युग की चाल कहें

कल धन्नो थी दुखियारी
हाँ, आज हुई बानो
दोनों का है दर्द एक ही
भाईजी, मानो

झूठी कथा ढाई आखर की
बोलो भाई!
बच्चों से हम कैसे सालों-साल कहें