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झूठ के शो रूम के सामने / मनोज छाबड़ा

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झूठ के शो-रूम के सामने
सच की भी एक छोटी-सी रेहड़ी लगती है
 
सच पर हमेशा
बैठा दिया जाता है पहरा
और
झूठ के पास चतुर सेल्समैन
जो हर ग्राहक को
ज़रूरतानुसार बेचता है झूठ
 
लाखों सेल्समेन से लदे टेलिविज़न से
जब हम सुनते हैं
प्रायोजित ख़बरें
और देखते हैं कामातुर साँसों को
ढेरों प्रेमियों से घिरी प्रेमिका को
तब
सच की टूटी रेहड़ी के पहिए पर
झूठ का अल्सेशियन कुत्ता
पेशाब कर जाता है